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प्रथम ऐतिहासिक चातुर्मास
हमारे परम सद्भाग्य से उदयगिरि के महासंत अनशन (संथारां) आराधक तपस्वी पू० श्री जगजीवनजी महाराज की परम कृपा और परम दार्शनिक, नेत्रज्योतिप्रदाता परम श्रद्धय पूज्य श्री जयंतीलालजी महाराज को. आज्ञा-आशीर्वाद से उनके शिष्यरत्न वाणीभूषणः पूज्य श्री गिरीश चन्द्रजी महाराज एवं साहित्यरश्मि पूज्य श्री जिज्ञेश मुनिजी महाराज ठाणा-२ हमारे नव-निर्मित अहिंसा-भवन के प्रांगण में दि० १७-८-८४ को मंगल चातुर्मासार्थ पधार कर सुख-शाता से विराजमान रहे। ज्ञान-ध्यान और तप-त्याग
पू० मुनिद्वय के सान्निध्य में प्रतिदिन प्रातः ध्यानयोग की साधना का अपूर्व प्रयोग किया जाता था। प्रवचन में श्रीमद् उत्तराध्ययन सूत्र की अमृतमय वाणी की श्रुत-सरिता निरंतर प्रवाहित रही। जनता ने संयम-तपका विविध रूप से अपूर्व धर्मलाभ उठाया । पर्वराज पर्दूषण-महोत्सव की छत्र-छाया में तपश्चर्या, .संड जाप-साधना, तपस्वियों की शोभा-यात्रा, विविध