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________________ अमृत का एक बिंदु ही जैसे मानव को अमर बना देता है, वैसे ही प्रभु महावीर के जीवन का एक मुक्ताकरण नर से नारायण, जोव से शिव और मानव से महा मानव बनाकर आत्मा को परमात्मा की पहचान करा देता है। भगवान महावीर के जोवन के अगाध महासागर से अनमोल रत्नों को चुनकर यह प्रश्न हार बनाया है; जिसे पाठकों को समर्पित करते हुए अत्यन्त प्रसन्नता व गौरव का अनुभव कर रहा हूँ। सुज्ञजन ! इस रत्नों के हार को सम्हालें यत्नपूर्वक इसको अपने जीवन का शृगार बनायें। अच्छा"ध्यान रखें.... इसकी पाशातना न हो। जहांतक बनसका वहाँतक मैंने अनुवाद में महावीर के जीवन की मूल भावना को अक्षुण्ण रखने का पूर्ण प्रयत्न किया है। फिर भी यदि कहीं त्रुटि दिख पड़े तो इसके लिए पाठकगण क्षमा करेंगे। ॐ शांति कोल्हापुर मार्ग,दिल्ली १५ अगस्त १९८५ जिज्ञेश मुनि
SR No.010409
Book TitleMahavira Jivan Bodhini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGirishchandra Maharaj, Jigneshmuni
PublisherCalcutta Punjab Jain Sabha
Publication Year1985
Total Pages381
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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