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ऐसी संजीवनी है जो कि अबोध किन्तु जिज्ञासु या पिपासु हृदय को स्पर्श कर सचेतन कर देती है । 'परिणामस्वरूप प्रभु के प्रति अभिप्सा जागृत हो निखरने लगेंगे और वात्सल्य
जायेगी, करुणा के भाव का स्रोत बहने लगेगा |
जब मैंने इस पुस्तक की गुजराती में रचना की और प्रकाशित होकर जिज्ञासु जनों के हाथों में गई तो इसका हिन्दी अनुवाद प्रकाशित करने के लिये अनेक सुझाव आये | मेरे मन में भी विचार आया कि क्यों न इसे हिन्दी में अनुवादित कर दिया जाय, ताकि मरुधर की चिरकालीक प्यासी जनता को अपने प्रभु के जीवन का ज्ञान हो सके, वह अपनी साहित्यिक पिंपांसा बुझा सके। इसी प्रयोजन से मैंने इस कार्य को उठाया और इसको आकार देने में अनेक ग्रन्थों के अध्ययन किया । पूज्य गुरुदेव श्री गिरीशचंद्रजी म. सा. का परम सहयोग व वात्सल्यभरा मार्गदर्शन बहुत उपयोगी रहा ।
इस स्वर्ण अवसर पर पूर्व भारत के योगीराज अनशन आराधक पूज्य श्री जगजीवनजी म. सा. की असीम कृपा और पूर्व भारत उद्धारक पंडितरत्न पूज्य दादा गुरुदेव श्री जयंतीलालजी म. सा. का अनन्य आशीर्वाद प्राप्त हुआ है ।