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मेरा अपना कुछ नहीं
मनुष्य का वास्तविक यदि कोई सच्चा मित्र है तो वह है-धार्मिक-आध्यात्मिक साहित्य । जिसका साथ मनुष्य के जीवन में एक दीपक का काम करता है. नये संस्कारों का आरोपण करता है व आत्मोत्थान के मार्ग पर अग्रसर करता है। विश्व में प्रतिदिन नवीननवीन साहित्य का प्रकाशन हो रहा है, लेकिन उसमें कुछ ही साहित्य उर्ध्वगामी होता है।
साहित्य और संस्कृतिका अटूट सम्बन्ध है। यदि संस्कृति दीपक है तो साहित्य तेल । जिससे दीपक निरंतर प्रज्वलित रहता है। साहित्य और संस्कृति का पृथक्करण अज्ञान तिमिर को जन्म देता है। जैन संस्कृति आगम-साहित्य में संरक्षित है । __ भौतिकवाद के इस वैज्ञानिक युग में इस प्रकार के साहित्य की विशेष आवश्यकता है। इसके द्वारा सहज ही में लोगों को अपने परमात्मा की ओर मोड़ा जा सकता है। प्रभु महावीर के जीवन-बोध में एक