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दूसरे के भवन में आकर यों उत्पात मचाना" और क्रोध में आकर उन्होंने अपना दिव्यास्त्र
वज्र असुरेन्द्र पर फेंका। ३१४ असुरेन्द्र ने वज्र को देखकर क्या किया था ?
हजार-हजार विलियों की तरह चमकताकौंधता वज्र देखकर असुरेन्द्र घबराया, जान मुट्ठी में लेकर उल्टे पैरों भागा। वज्र उसका पीछा कर रहा था। तीक्ष्ण अग्नि-ज्वालाओं की तरह किरणें असुरराज को भस्म करने को दौड़ रही थी, तीव्र वेग से दौड़त-भागता घबराया हुआ असुरराज सीधा पहुंचा, ध्यानलीन श्रमण महावीर के चरणों में। भय से कांपता हुआ वह पुकार रहा था भयवं शरणं, भयवं शरणं-प्रभो! आप मेरे शरण दाता हैं, बचाइये, रक्षा कीजिए। और वह छोटीसी चींटी का रूप बनाकर महावीर के चरणों
में छुपकर-दुबक कर बैठ गया। . ३१५ देवराज को वज्र छोड़ने के बाद क्या स्मरण
पाया था ? देवराज ने क्रोधाविष्ट होकर असुरराज पर