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प्र. ३१३ सौधर्मेन्द्र ने चमरेन्द्र पर वज्रप्रहार क्यों
किया था ?
उ.
एक दिन ध्यानलीन श्रमण महावीर के चरणों में असुरेन्द्र पाया। महावीर तो ध्यान में अन्तर्लीन थे। उसने विनय पूर्वक प्रदक्षिणा की और वोला-"प्रभो! आज मैं उस अहंकारी सौधर्मेन्द्र से लोहा लेने जा रहा हूं। मेरी जीवन रक्षा आपके हाथ में है, आप ही मेरी अनन्य-शरण हैं।" महावीर को वन्दना कर असुरराज चमरेन्द्र विकराल रूप बनाकर, रौद्र हुंकार करता हुआ स्वर्ग में पहुंचकर देवराज इन्द्र को ललकारने लगा। उसका भयानक रौद्र रूप देखकर हास-विलास में मग्न देवगण डर गये, देवियों को कान्ति मन्द पड़ गयी। स्वर्ग में खलबली मच गई, अचानक असुरराज के अाक्रमण का सम्वाद बिजली को भांति सर्वत्र फैल गया, अनन्तकालमें ऐसा कभी नहीं हुआ, महाश्चर्य! देवराज इन्द्र ने असुरेन्द्र को ललकारा-"दुष्ट ! यह धृष्टता तेरी !