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प्र. २८४ क्षत्रिय के आदेश पर राजपुरुषों ने क्या किया था ?
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बोला - "यह रंगे हाथों पकड़ा गया है, चोर तो है ही, फिर भी अपनी चोरी भी स्वीकार नहीं करता है । बोलता भी नहीं, जबान सी रखी है ? जाओ इसे फाँसी पर लटका दो ।"
उ..
क्षत्रिय के आदेशानुसार श्रमरण महावीर को फाँसी के तख्ते पर लाकर खड़ा कर दिया गया। राजपुरुषों ने पुनः पुनः समझाया -- "तुम अपना नाम क्यों नहीं बता देते, कुत्ते की मौत क्यों मर रहे हो ? खैर मरना ही है तो मरो, पर कोई अंतिम इच्छा है तो बताओ, उसे पूरी कर दें, ताकि मरते दम प्रारण अटकें नहीं ।' इन क्रूर व्यंग्य पर भी महावीर शांत और मौन रहे ।
प्र. २८५ म. स्वामी को फाँसी लगाने पर कितनी बार फंदा टूट गया था ?.
क्रूर राजपुरुषों ने भी फांसी का फंदा महावीर के गले में लगाया और नीचे से तख्ता हटा दिया। पर आश्चर्य ! जैसे ही तख्ता हटा,