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फंदा टूट गया और महावीर नीचे आ गिरे । दुबारा दूसरी रस्सी बांधकर फंदा डाला गया, पर वही पहले जैसा ही टूट गया। सभी दर्शक आश्चर्य से फटी आँखों से देख रहे थे, आज तक कभी ऐसा नहीं हुआ, आज ही ऐसा क्यों हो रहा है ? हजारों अपराधियों को मारनेवाला यह फंदा आज एक बार नहीं, दो बार नहीं, सात-सात बार टूट गया है । श्राखिर बात क्या है ? कहीं कुछ दाल में काला है । लगता है यह कोई चोर नहीं, साधु हैं । जानबूझ कर कोई अन्याय न हो ।
प्र. २८६ म. स्वामी के गले से बार २ फाँसी का फंदा टूटने पर राजपुरुषों ने क्या किया था ? राजपुरुषों का दिल सहम गया, वे दौड़कर तोसलि क्षत्रिय के पास आये, क्षत्रिय ने यह घटना सुनी तो उसका हृदय धड़क उठा"अरे रूको ! यह कोई परम हंस योगी तो नहीं है ? हम धोखे में कुछ अन्याय न कर बैठें ?" क्षत्रिय स्वयं दौड़कर ग्राया, महावीर
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