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प्र, २८० म. स्वामी को उपसर्गों में भी स्थिर देखकर
"संगम को क्या हुआ था? . "एक ही रात्रि में बीस-बीस महान उपसर्ग प्रभु
पर आये, पर संकल्प के धनी महावीर अपनी .. स्थिति से, अपनी नासाग्र दृष्टि से तिल भर —ी डिगे नहीं। दुष्ट संगमा का अहंकार चूर-चूर - हो गया, उसकी उपद्रवी बुद्धि कुंठित हो गई - तथा लज्जा और ग्लानि से वह मन ही मन
- भर गया। प्र:-२८१ म. स्वामी को संगम नो और किस तरह उपसर्ग
दिया था ? 'प्रातःकाल होते ही श्रमरण महावीर आगे चले गये। संगम उनका शिष्य बनकर साथ-साथ चल पड़ा। प्रभु गाँव के बाहर उद्यान में ध्यानस्थ हो जाते तो संगम गाँव में जाकर "कहीं सेंध लगाता, कहीं चोरियां करता, एवं अन्य दुष्कृत्य करता, लोग उसे पकड़कर पीटने लगते तो कह देता-"मैं क्या करूं, मुझे तो गुरुजी ने यह काम सिखाया है, तुम्हें कुछ. कहना है तो उन्हीं से कहो।" भोले लोग