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१७) हमा
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(१७) हवा का गोल बबंडर उठा। (१८) अंत में हार-थककर संगम ने कालचक्रः
. का जबरदस्त प्रहार महावीर पर किया ।। (१६) आखिर संगम हार गया, उसे कुछ नहीं
सूझा तो एक विमान में बैठकर महावीर को पुकारने लगा--"पाप खड़े-खड़े क्यों: कष्ट उठा रहें हैं, आइये, मैं आपको ही स्वर्ग की यात्रा करा लाऊँ ।" इस माया का भी उस पर कोई प्रभाव
नहीं पड़ा। (२०) संगम ने अब वसन्त ऋतु की मंद और
मादक बयार बहाई, भीनी-भीनी सुगंध।। शांत वातावरण और नूपुर की झंकार करती हुई अर्धवसना अप्सराएं अपने मांसल, कामोत्तेजक अंगो का प्रदर्शन कर काम-याचना करने लगी, महावीर के समक्ष । उन्होंने हाव-भाव अंग विन्यास एवं सौंदर्य का उन्मुक्त प्रदर्शन किया । अनिमेष दृष्टि महावीर तो उसी प्रकार: स्थिर खड़े थे।