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(१४) झरनों 'सो सॉसे लहराईं, नशा चढा था जन-जन मे । इन्द्र स्वय हर्षित हो बैठे, हीरे बरसे ऑगन मे ॥ मान सरोवर सोहर गाती, कलकल की स्वर लहरी में । मुखडे ऐसे दमक रहे थे, शीशा ज्यो दोपहरी मे ।। तेज देखकर थम जाता था, चढता सूर्य विहान का। पुण्य-दिवस हम मना रहे है, महावीर भगवान का ॥
(१५) भू ने माथा रखा पगो पर, अम्बर ने की आरती । चौक पुरे हर देहरी आँगन, धन्य हो गई भारती ॥ सागर की नव वधुएँ सजकर, चरण चूमने को आईं। शैल हिमालय की बेटी फिर, दूध धुला दर्पण लाईं । सव से अच्छा कोहनूर था, वह हीरे की खान का। पुण्य-दिवस हम मना रहे है, महावीर भगवान का।
(१६) मदोन्मत्त हाथी था जिनका, एक खिलौना बचपन का।
तक्षक नाग किया वश मे था, खेल हुआ था छुटपन का ।।