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७६ क्षमा-दया और सत्य अहिंसा, थी जिनकी मीठी बोली। जियो और जीने दो सबको, सूरत कहती थी भोली ।। पियु पियु के स्वर गूजे फिर, मन पिघला चट्टान का। पुण्य-दिवस हम मना रहे हैं, महावीर भगवान का ॥
(१७)
कमनीय कला की मूरत वन, वैभव की मणियाँ बिखराई । गायक के स्वर-संधानो मे, पंचम रस बन लहराईं। मृदुल-भुजाओ की गगा में, करुणा रोज नहाती थी। जिनके चरणों की धली से, छल-छाया घबराती थी। विना कहे औठो पर आता, शब्द शब्द आख्यान का। पुण्य-दिवस हम मना रहे हैं, महावीर भगवान का ॥
(१८)
शब्द मन वनकर विखरे फिर, नगर डगर हर भावो मे । धर्म-अहिंसा का लहराया, ज्यो कदंव की छाओं मे ।। ऐसा फूल बना मधुवन का, महक उठी हर फुलवारी। मोलह स्वर्ग निछावर होते, ऐसी सूरत थी प्यारी ॥ जैने मुमन खिला धरती पर, सुर पुर के उद्यान का। पुण्य-दिवस हम मना रहे है, महावीर भगवान का ।