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१२ .
जिनके
प्रशान्त ललाम दिव्य स्वरूप को
स्वय इन्द्र ने सहस्र सहस्र लोचनो से देख कर भी
तृप्ति प्राप्त न की
और
अपनी प्रसन्नता के पारावार को
ताडक नृत्य द्वारा भी किंचित अभिव्यक्त न कर सका
ऐसे
पांडुक शिला पर विराजमान
एक हजार आठ स्वार्णभ कलशों से
क्षीरोदक द्वारा अभिषिक्त
नवजात वर्द्धमान
अपने जन्म कल्याणक महोत्सव द्वारा
हमारे
जन्म-मरण का नाश करें
परम-पुनीत पच्चीसवें शतक पर भाव-भीनी विनयाञ्जलि
अर्पयिता
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भीकमसेन रतनलाल जैन
१२८६ वकीलपुरा देहली ११०००६