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जो
समवशरण के हृदय कमल पर अन्तरीक्ष विराजमान है
तथा
जो तीन छत्र, चौसठ चँवर, देव दुन्दुभि, अशोक वृक्ष, प्रभा - मण्डल, रत्न सिंहासन, पुष्पवृष्टि
और
दिव्य ध्वनि इन अष्ट प्रातिहार्यों से मंडित है
ऐसे
गणधर चर्चित सुरपति अर्चित
तीर्थंकर महावीर प्रभु
अपनी प्रशान्त वैर विरोधी शीतल शान्त छत्र-छाया मे
इस क्षुद्र प्राणी को स्थान दान देकर धर्मामृत का आस्वाद कराने की दया करे
परम पुनीत पच्चीसवें शतक पर भाव-भीनी विनयाञ्जलि
अर्पयिता :
पन्नालाल जैन आचिटेक्ट ( साहित्यकार )
व्यवस्थापक जैन साहित्य प्रकाशन
४६८३ शिवनगर न्यू देहली
११०००५