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सिह केतु देव का जीव कनकोज्ज्वल विद्याधर
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सौधर्म स्वर्ग से चय कर फिर कनकोज्वल राजकुमार हुआ। देश कनकप्रभ नृपति पख विद्याधर घर अवतार हुआ ।। जल से भिन्न कमल वत् रहकर विद्याधर ने भोगे भोग । एक दिवस गुरु के वचनो का प्राप्त हुआ था शुभ सयोग ।।
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