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कनकोऽवल युवराज वैराग्य की ओर
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ससार देह एव भोगो से वह युवराज विरक्त हुआ । महाव्रती निर्ग्रन्थ दिगम्बर रत्नत्रय का भक्त हुआ। कनकोज्वल मुनिवर भालिग शुद्धोपयोग मे रहते थे। , अस्थिरता होने पर किचित शुभ उपयोगो मे वहते थे ।।