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सिंहकेतु देव द्वारा पचंभेरु की वन्दना
वह पचमेरु के चैत्यों की वन्दन करता था यदा-कदा | शुभ राग और सुख वैभव मे ही रहता था तल्लीन सदा ॥ निश्चय ही धर्म जहाँ रहता शुभ भाव पुण्य सहचारी है । सहचारीपन के ही कारण शुभ पुण्य धर्म अधिकारी है ॥ (ε =)