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त्रिपृष्ठ नारायण नर्क से निकल कर
सिंह पर्याय में
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कई सागर पर्यन्त नर्क के, दुख सहे उसने घनघोर । निकल वहाँ से हुआ शेर वह, हिसक पशु गगा की ओर ।। कितु अभी भी उस तिर्यच को सूझा नही कोई सदुपाय । अथवा ऐसा कहो कि युगपत, मिले नही पाचों समवाय ॥
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