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त्रिदंडी राधुअग्निभूत (अग्नि मिन्न अर्थात अनिसह काजीव)
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सनत्कुमार स्वर्ग से चय कर मन्दिर नाम नगर में । अग्निभूति यति हुआ त्रिदडी गौतम द्विज के घर मे ।। मिथ्या शास्त्रो का प्रवचन कर ऐकान्तिक फैलाया। वन पत्थर की नाव स्वयं ही ड्वे और डुबाया ।