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२०२ फिर क्या था गौतम ज्ञानी का, मिथ्या-मद सारा चूर हुआ । स्तम्भ देख स्तम्भित था, मिथ्यात्व अंधेरा दूर हुआ ।।
२०३ सम्यक्त्व जगा निम्रन्थ हुआ, सन्मति का गणधर वन पहला । श्रुत द्वादशाग मे भाव गूथ, जिनवाणी अमृत रहा पिला ॥ तीर्थंकर भगवान् महावीर के
अमर संदेश
२०४ जिस दिवस दिव्यध्वनि खिरी,प्रथम वह सावन कृष्णा थी पावन। तिथि महावीर के शासन की, प्रतिपदा मांगलिक मन भावन ।।
२०५ विपुलाचल से दिया गया, जो प्रथम देशना का सन्देश । गौतम गणधर ने गूथा है, उसको ही सामान्य-विशेष ।।
२०६ वीतरागता परम अहिंसा, स्याद्वाद सर्वोदय ही। कर्मवाद निःसगवाद है, द्वादशांग वाणी मय ही।
२०७ पर द्रव्यो से भिन्न सर्वथा, ज्ञान ज्योति हर चेतन है । स्वाभाविकता वीतरागता, वैभाविकता बन्धन है॥
२०८ जीने का अधिकार सभी को, स्वय जियो जीने भी दो। शेर गाय को एक घाट पर, करुणा-जल पीने भी दो॥