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१८७ मानाङ्गण मे चौपथ चौदिशि, जिन प्रतिमा मानस्तम्भ खडे । उनके आगे सरवर सुन्दर, पुनि प्रथम कोट में रजत जड़े।
खाई को घेरे वन-उपवन पुनि, दिशा चतुर्दिक ध्वजा पीठ । फिर स्वणिम कोट दूसरा है, द्वारों पर भवनों के किरीट ।।
१८६ पुनि कल्पवृक्ष वन मे मुनि सुर, के बने हुये हैं सभा-भवन । है मणिमय कोट तृतीय रचा, द्वारों पर कल्पो के सुर-गण ।।
१६० पुनि लता-भवन स्तूप आदि, श्री मंडप क्रमश. तने हुये । है केन्द्र स्थल मे गधकुटी, चहुँ दिशा कक्ष हैं बने हुये ॥
१६१ इन बारह कक्षो मे क्रमश., मुनि कल्पवासिनी आयिकाएँ । ज्योतिष व्यन्तर भवनत्रिक, की है समासीन देवाङ्गनाएँ।
१६२ फिर देव-भवन व्यन्तर ज्योतिष, अरु कल्पवासि नर पशु के हैं । ये सभी सभ्य श्रोता वन कर, सन्मति वाणी को सुनते हैं।
महावीरश्री के प्रमुख गणधर
__ का अविर्भाव
१६३ उस गधकुटी कमलासन पर, है अन्तरीक्ष श्री वर्द्धमान ।। है।समवशरण के जीव मभी, दिव्यध्वनि श्रवणातुर महान ।।।