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लोक विजेता महामल्ल सव, काम-सुभट योद्धा से हारे । रभा और तिलोत्तमाओ पर, हरिहर ब्रह्मादिक भी वारे ।।
१७५ तप से विचलित करने प्रभु को, अप्सराओ ने हाव-भाव से । खूव रिझाया महावीर को, हार गई पर ब्रह्म-भाव से।
१७६ पर ब्रह्म मे लीन तपस्वी, डावांडोल हुआ नहिं किञ्चत् । प्रलय-पवन से हिले शैल पर, मन्दराद्रिनहिचलितकदाचित् ।।
पद दलिता चंदना के हाथों महावीर श्री द्वारा प्रहार ग्रहण
१७७ वैशाली गणतन्त्र, सघ के, अधिनायक राजा चेटक थे । महावीरश्री के मातामह, वे तो जनकसुता-सप्तक थे।
१७८ राजकुमारी सती चंदना, कन्या थी षोडस वर्षीया । अपहृत एव पितृ वियुक्ता, वस्ता सुन्दरि अति कमनीया ॥
१७६ क्रीता दासी केश मुडिता, दलिता दुखित वन्दिनी थी। खाने को कोदो के दाने, सेठानी से पाती थी।
१८० षण मासिक उपवासी प्रभुवर, आहारार्थ निकलते हैं । उपर्युक्त अनुसार आखडी, की विधि लेकर चलते हैं।