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वीस कोटि अवतार गजो के, गर्दभ पशु के साठ करोड़ । स्वाँग श्वान के तीस कोटि थे, साठ लाख क्लीवो के जोड ||
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पर्यायें, रजक वृत्ति की नव्वे लक्ष के, वीस आठ कोटिक क्रम कक्ष ॥
बीस कोटि नारी मार्जार एव तुरगी
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साठ लाख पर्यायो में उपजे राजाओ के पद
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वारम्वार |
तो, गर्भपात कर पर उपर्युक्त गिनती अनुसार ॥
Το
फलो मे, भोगमूमि अवतार देवकुमार
दानादिक के पुण्य अस्सी लाख बार स्वर्गों में क्रमश
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हुआ ।
हुआ ॥
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ऊपर ।
ह्रास विकासो के झूलों पर, झूला वह नीचे किन्तु मुक्ति का मार्ग न पाया, रत्नवय पथ पर चल कर ॥
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इस प्रकार मारीचि जीव ने कोई क्षेत्र नही छोड़ा | क्योकि कभी भी उसने निज से, सम्यक् नाता नहि जोड़ा ||
युवराज विश्वनंदी
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भ्रमते-भ्रमते
राजगृह
राजगृह मे, हुआ विश्वनन्दी युवराज | जयिनी विश्वभूति नृप के घर, वह मारीचि जीव सिरताज ॥