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३.६
परिव्राजक निज तप प्रभाव से, आयु पूर्ण कर स्वर्ग गया । ब्रह्म स्वर्ग के सौख्य भोगकर, पुनः धरा पर मनुज भया ।।
मिथ्या मत प्रचारक जटिल ऋषि
३७
वह, भारीचि जीव अवनी पर । हुआ, द्विज कपिल और काली घर ॥ ३८ ऋषि वन कर मिथ्यात्व - धर्म का, उसने अति उपदेश दिया । भाति भाति की करी तपस्या, एव काय. क्लेश किया ॥ ३९
आयु पूर्ण कर उस तापस ने, प्रथम स्वर्ग मे जन्म लिया । स्वर्गिक सुख के भोगो में ही, अपना काल व्यतीत किया ||
परिव्राजक पुष्पमित्र
ब्रह्मस्वर्ग से चय कर 'जटिल' नाम का पुत्र
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द्विज दम्पत्ति थे ।
भारतीय अब, पुष्पमित्र नामक यति थे ।
४१
वे स्वर्गो का वैभव तज कर, नगर अयोध्या आये थे । सांस्य धर्म के उपदेशो से जन जन को भरमाये थे |
ये
भारद्वाज - पुष्पदत्ता इनके सुत मारीचि जीव