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आयु पूर्ण कर पुन: क्योकि तपस्या के प्रभाव से मिले
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एकान्तमत प्रचारक अग्निसह्य ब्राह्मण
सनत्कुमार स्वर्ग मे सात सागरो तक सुख
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हुवे, सौधर्म स्वर्ग अधिकारी | सम्पदा भारी ॥
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ब्राह्मण
भरत क्षेत्र श्वेतिक नगरी मे, अग्निभूति थे । प्रिया गौतमी के सग सुख से, करते जो कि रमण थे ॥
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वह मारीचि इन्ही के घर मे, अग्निसह्य जिसके द्वारा परिव्राजक का, मिथ्या मत
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तापस ।
पहुँचा, आयु पूर्ण कर भोगा, चख पुण्यों का मधु-रस ॥
मिथ्या शास्त्रों का
आयु पूर्ण कर
त्रिदंडी साधु अग्निभूति
पंचम
अवतरित हुआ । स्फुरित हुआ ||
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सनत्कुमार स्वर्ग से चय कर, मन्दिर नाम अग्निभूति यति हुआ त्रिदडी, गौतम द्विज के
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अध्ययन, कर स्वर्गे, पाई
नगर मे ।
घर मे ॥
ऐकान्तिक फैलाया ।
देव की
काया ||