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से बहुत बुरा हुआ, इसलिए अव हमें वर्द्धमान का विवाह करके शीघ्र ही राज-पाट से मोह हटा लेना चाहिए। स्वीकृति सूचक सिर हिलाते हुए त्रिशलादेवी ने पतिदेव के माङ्गलिक प्रस्ताव का हृदय से समर्थन किया और एकलौते पुत्र के विवाह की बात सुनकर अत्यत आनन्दित हुई।
आत्म-साधना की बुनियाद
नित्य प्रति राजनैतिक, सामाजिक विसवादों को सुलझातेहुए वर्द्धमान की विशाल आत्मा विश्व-हित के लिए तडफ उठी, धर्म की मखौल उड़ाने वाले पाखंडी पुरोहितो के अत्याचारो से दिल तिलमिला उठा। विश्व-हित की सद्भावनाएं हृदय मे हिलोरे मारने लगी और सुषुप्त क्षत्रियत्व जाग उठा। __वर्द्धमान ने विचार किया तो विदित हुआ कि दुनियाँ की खूरेजी का मूल कारण हिंसा और अहकार है; ये दोनो अत्याचारों की जड़े हैं, इनका दमन किये बिना किसी भी हस्ती को दुनिया मे शान्ति कायम करना नामुमकिन है। तोप और तलवार जिस्म के भले ही टुकड़े-टुकड़े करदें पर वे दिल में बहने वाले उत्तम विचारो को नेस्तनाबूद नही कर सकते। राज्य-दण्ड के डर से विद्रोही का सर भले ही झुक जाये और चाहे तो वह क्षमा भी माँग ले, पर उसके विद्रोही विचार नही बदल सकते । आग की जलती हुई ज्वाला मे मनुष्य का शरीर भस्म हो सकता है, पर उसकी खोटी प्रवृत्तियाँ तो इससे और भी सतप्त हो जायेंगी। इसलिये अपने सदुद्देश्य की पूर्ति के लिए वर्द्धमान को कुल परम्परा से प्राप्त राज्य-तंत्र, विशाल शस्त्रागार, और अजेय सेनानी, विशाल भवन व्यर्थ से जान पड़ने लगे । दुनिया को रिझाने वाली भोगोपभोग की विविध आकर्षक वस्तुएँ उन्हे नीरस ज्ञात होने लगी। राजसी सुखों के बीच वर्द्धमान को रहते