________________
१२३
माता-पिता ने अपने पुत्र को पढ़ने के लिए विद्यालय मे भेजने का विचार किया। एक दिन राजा ने पुरोहित को बुलाकर विद्याध्यन का शुभ मुहूर्त निकलवाया और यथा समय तैयारियाँ प्रारंभ करदी।
देखते-देखते नद्यावर्त महल के सामने विशाल मण्डप बनकर तैयार हो गया। निश्चित समय से पूर्व ही मण्डप लोगो से खचाखच भर गया। इस अवसर पर कई राजा-महाराजा भी आये थे। हवन क्रिया के उपरान्त उपाध्याय ने कहा-बोलो
"णमो अरिहंताणं" वर्द्धमान ने पूरा अनादि निधन मन्त्र बोल दिया। उपाध्याय को आश्चर्य हुआ, तब उन्होने राजकुमार की पट्टिका पर 'अ, आ' लिखकर उनसे इन्ही दो शब्दो को लिखने के लिए कहा-वर्द्धमान ने पट्टिका पर समस्त स्वर और व्यञ्जन वर्ण लिख दिये। उपाध्याय को तब बहुत आश्चर्य हुआ कि इन्होने विना सीखे यह सव कैसे लिख दिये | तब उन्होने एक कठिन सवाल लिखकर दिया, राजकुमार ने उसे भी हलकर दिया। एक अधूरा श्लोक बोला तो उसकी भी पूर्ति कर दी। अब तो सभी को बहुत ही आश्चर्य हुआ कि बात क्या है ? उस समय उपाध्याय के कुछ भी समझ मे नही आया।
पर वास्तविक बात यह थी कि आग काड़ी मे कही बाहर से नही लानी पड़ती, वह तो उसके अन्दर ही रहती है। पूर्व जन्म के सुसस्कारो के प्रभाव से ही भ० वर्द्धमान-महावीर मति, श्रुति, और अवधि ज्ञान सहित अवतरित हुए थे, इसलिए यहाँ तो उन्हे आग काडी को जैसे खीचने ही भर की देर होती है उसी भाँति केवल उन्हे याद दिलाने मात्र ही की आवश्यकता थी। इसलिए अन्य बालको की तरह इन्हे किसी गुरु से शक्षा