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वालक गये और पेड पर चढकर खेल खेलना शुरू कर दिया। उधर अचानक एक देव वर्द्धमान के बल की परीक्षा हेतु विकराल सर्प का रूप कारण करके आया और पेड़ की पीड से लिपट गया। भाग्य से उस समय वर्द्धमान ही की वृक्ष पर चढने की बारी थी। भागते हुए वर्द्धमान आये और वृक्ष पर चढ़ने ही वाले थे कि इतने मे ऊपर से किसी वालक ने उन्हें पेड़ पर चढने से रोका और यह कहता हुआ कि "पेड से काला नाग लिपटा है, "वही रहो-पास न आओ" कहकर नीचे कूद पडा; दूसरे साथी न कूद सके, और भय के मारे रोने-चिल्लाने लगे। राजकुमार वर्द्धमान बेधडक पेड के पास तव तक पहुँच गये और सर्प को पकडकर उससे खिलवाड़ करने लगे । जव सर्प को बहुत दूर छोड आये तव कही बालक पेड से नीचे उतरे और राजकुमार की निर्भयता-निडरता और शूरवीरता से प्रसन्न होकर उनका "वीर" नाम रख दिया। राजकुमार वर्द्धमान को महावीर की उपाधि __ एक दिन एक हाथी पागल होकर नगर मे उपद्रव मचा रहा था । प्रजा बेचैन थी, महावत हैरान थे और राजा सिद्धार्थ परेशान । बडी-बडी तरकीवे हाथी को पकड़ने की सोची गई, पर काम एक भी न आई जब यह बात वीर वर्द्धमान को विदित हुई तो घटनास्थल पर पहुंच कर ज्यो ही उस मदोन्मत्त पागल हाथी को पुचकारा और हाथ फेरा तो वह शान्त हो गया। वीर वर्द्धमान नद्यावर्त महल की ओर बढे तो हाथी भी उनके पीछे पीछे चलने लगा, यह देख सभी आश्चर्य चकित हो गये और तव से नगर के लोग उन्हे 'महावीर' कहने लगे। वर्द्धमान का विद्याध्ययन समारम्भ
वर्द्धमान की आयु का सातवाँ वर्ष समाप्त हो चुकने पर