________________
१२०
करने के लिए अवतरित होती है । कहा भी है
यदा यदा हि लोकेस्मिन्-पापाचार परम्परा।
तदा तदा हि वीरान्त, प्रदुखा ता सम्भव. ।। अर्थात -जव-जव देश मे पापाचार बढ़ा तव-तव ऋपभदेव से लेकर वीर प्रभु तक धर्म तीर्थ स्थापकों का जन्म हुआ।
हाँ तो, भारत के उस धार्मिक अशान्त वातावरण के समय कुण्डग्राम के राजा सिद्धार्थ की महारानी त्रिशलादेवी की पावन कँख से चैत्र सुदी त्रयोदशी के दिन शुभ मुहूर्त मे उस वीर महापुरुष ने जन्म लिया जिसने ससार को शान्तिमय सच्चे धर्म का उपदेश दिया, यही महान् उपदेशक जैनियो के ही नही वरन् अखिल विश्व के चौवीसवे तीर्थङ्कर अहिंसा के अवतार भगवान महावीर के नाम से दुनिया मे प्रसिद्ध हुए। वीरावतरण के समय
जिस समय वीरावतरण हुआ उस वक्त समस्त संसार मे हर्ष छा गया, न केवल मनुष्यो मे वल्कि तमाम सुर-असुर, किन्नर, आदि गन्धर्वो ने मिलकर हर्ष प्रकट किया। स्वय परिवार सहित इन्द्रो ने आकर भगवान का जन्मोत्सव मनाया। नगरवासियो ने भी खूब खुशियाँ मनाईं। प्रकृति ने भी उस समय अनूठी शोभा धारण की थी। आकाश निर्मल हो गया था और चारो ओर वन मे वसन्त की अपूर्व वहार थी। सुगन्धित मन्द पवन वहने लगा । सूर्योदय होते ही जैसे दिवाकीर्ति (उलक) की अपशकुन वोली वद हो जाती है, ठीक उसी तरह 'वीर-रवि' के उदय होते ही हिंसा का प्रचार करने वाले पाखण्डी पुरोहितो की तूती बद हो गई। धर्म के नाम पर वहने वाली स्वार्थ की सरिता का प्रवल प्रवाह रुक गया। तीनो लोको मे सुख और