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शान्ति फैल गई। यहां तक कि नारकीय जीवों ने भी इस सुअवसर पर अन्तर्महत के लिए सुख शान्ति का अनुभव किया।
राजा सिद्धार्थ ने भी पुण्यात्मा पुत्र की प्राप्ति के उपलक्ष्य मे समूचे राज्य में "किमिन्छक" दान दिया और उस दिन राज्य मे जितने बच्चों ने जन्म लिया उनका पालन-पोपण राज्य घराने से ही होगा-इस प्रकार की घोपणा करके राजा ने प्रजा वत्सलता का अपूर्व परिचय जनता के लिए दिया। सिद्धार्थ ने होनहार बालक का नाम बर्द्धमान रक्खा।
वर्द्धमान का वाल्यकाल
जन साधारण की अपेक्षा वीर-प्रभु मे कई विशेपताएँ थी। उनका शरीर कामदेव के ममान सुन्दर, कस्तूरी की तरह अत्यत सुगन्धित, मल-मूत्र की वाधा से रहित, दूध के समान सफेद खून होने की वजह से उनके कान्तिवान शरीर से पसीना कभी नही निकलता था।
द्वितीया के चन्द्रमा के समान राजकुमार वर्द्धमान बढने लगे, तव कभी घुटनो के वल चलकर, कभी खड़े होकर गिरना और गिरकर फिर खड़े होकर दौडने लगना और कभी अपने साथियो के साथ खेलना और कभी खेलते-खेलते माता की गोदी मे जाकर वैठ जाना तथा तोतली भाषा मे "भूख लगी है", यह कहकर उनकी छाती से लिपट जाना आदि वालकोचित क्रीडाओ द्वारा भगवान माता-पिता को सदा हँसाते ही रहते थे। राजकुमार वर्द्धमान को वीर की उपाधि
यो तो वर्द्धमान सयाने होने पर अपने साथियो के साथ रोज ही खेल-खेलते थे, पर एक दिन किसी बगीचे मे "कलामलाडी" ("आमली क्रीडा"--"अडाडा वरी") खेल-खेलने सभी सहयोगी