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हैं। यही कारण है कि वेदो मे यत्र-तत्र ऋपभदेव जी का स्मरण किया गया है इसीलिए इन्हे यदि अन्य महापुरुपो के समान पौराणिक ही मान लिया जावे तो ऐतिहासिक पुरुप मानने में क्या आपत्ति हो सकती है ? इन ऋपभदेव जी से लेकर कितने ही लम्बे कालो के अन्तर से परम्परया भ० पार्श्वनाथ तक' बाईस तीर्थङ्कर और हुए। इनमें से नेमिनाथ तथा पार्श्वनाथ तो विशुद्ध ऐतिहासिक महापुरुष स्वीकार कर लिए गए हैं। भ० पार्श्वनाथ के २७२ वर्ष बाद हमारे चरित नायक भ० महावीर स्वामी का आविर्भाव हुआ। इसलिए जिन परिस्थितियो मे उनका जन्म हुआ उसको प्रकाश में लाने के पहिले हमे भ० पार्श्वनाथ के बाद के शासन काल की ओर ध्यान देना आवश्यक है।
म० पार्श्वनाथ के बाद की परिस्थिति
भ० पार्श्वनाथ स्वामी के मुक्ति लाभ के २७२ वर्ष बाद और ईस्वी सन् से ६०६ वर्ष पूर्व अर्थात् आज से २४८३ साल पहिले बिहार प्रान्त के कुण्डग्राम (वर्तमान वसाड) नामक नगर मे राजा सिद्धार्थ तथा महारानी त्रिशला के गर्भ से भ० महावीर स्वामी का जन्म हुआ। राजा सिद्धार्थ एक न्यायप्रिय शासक थे और उनका राज्य धन धान्य से सम्पन्न था। वे इक्ष्वाकु कुल भूपण ज्ञातृवशीय क्षत्रिय राजा थे। महारानी त्रिशला उस युग के भारतीय गणतंत्र के राष्ट्रपति राजा चेटक की वरिष्ठा (वडी) सुपुत्री थी। वैशाली उनकी राजधानी थी। __इतिहास बतलाता है कि उस काल मे भी आज के समान भारतीय गण तनात्मक राज्य छोटे-छोटे राज्य सघो मे विभक्त था। उन्ही राज्य सघो मे से वज्जियन राज्य सघ एक विशाल सघ था और राजा चेटक वही से अपना शासन संचालन करते