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थे। त्रिशला के अतिरिक्त राजा चेटक की छह सुपुत्रिया और थी। सव से छोटी पुत्री चेलना इतिहास प्रसिद्ध बिम्बसार सम्राट् श्रेणिक की महारानी थी, राजा सिद्धार्थ सम्राट श्रेणिक एवं राष्ट्रपति चेटक क्षत्रिय होकर भी जैनधर्म के सच्चे अनुयायी थे। पारस्परिक सवधो के कारण ये खूब हिलमिल कर रहते थे। फलस्वरूप तत्कालीन भारत मे इनका कोई भी शत्रु नहीं था और जो थे भी वे उत्तम व्यवहारो से वशीभूत कर लिए गए थे । साम्राज्यवाद के ये कट्टर विरोधी थे। तत्कालीन राजनैतिक धार्मिक और सामाजिक स्थिति
राजनैतिक स्थिति तो उस समय ऐसी थी जिसकी कि आलोचना किसी भी प्रकार नही की जा सकती। कारण कि राजकीय पुरुष जैनधर्म के निर्ग्रन्थ आदर्श पथ चिह्नो पर चलते हुए शासन सूत्र चला रहे थे। हमारे चरित्र नायक भ० महावीर स्वामी के पिता सम्राट् सिद्धार्थ स्वय भ० पार्श्वनाथ द्वारा प्रतिपादित धर्म के कट्टर अनुयायी थे। उस समय भारत से दुर्भिक्ष विदा हो चुका था, इसलिए प्रजा राज्य वाधाओ से उन्मुक्त थी। टैक्स उतना ही था, जिसको प्रजा नहीं के बरावर अनुभव करती थी। किन्ही स्थितियो का यदि अधिक से अधिक मार्मिक तथा रोमाञ्चक वर्णन किया जा सकता है तो वे उस समय की सामाजिक तथा पाखण्डपूर्ण धार्मिक परिस्थितिया ही हो सकती हैं। धार्मिक रीति-रिवाज अपने पाखडमयी क्रियाकाण्डो के कारण बेहद विगड चुके थे। धर्म के नाम पर जहा एक ओर हिंसा की खुलकर होलियाँ खेली जा रही थी, वहाँ दूसरी ओर अत्याचारअनाचार-असत्य-स्वार्थ-अधर्माचार आदि के कारण नैतिक गुणो पर भी पाला पड़ता जाता था । धर्म तत्त्व के प्रत्येक अग प्रत्यग मे साम्प्रदायिकता का घातक हलाहल भरा हुआ था। उस समय के स्वार्थी-विलासी-पाखडी एव मासाहारी धर्म गुरुओ ने-धर्म