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कादम्वनी विन
जिन्दगानी, सेमर-सुमन ज्यो लग रही है व्यर्थ सूनी।। "छोड इनको सर्वथा रे, अन्यथा तेरा सुसम्भावी पतन है।" आज के संत्रास मय ससार में, महावीर का संदेश ही ऊषा किरण है।"
(३)
जन्म क्या है ? "मरण की भूमिका है", ले चुका इसको अनंती बार प्राणी । मृत्यु का बन ग्रास क्या जाने, कव कफन ले ओढ अस्थिर जिंदगानी ।। इसलिये भयभीत सब हैं, लड़खड़ाते भार अपना ढो रहे है। कर रहे है पंचपरिवर्तन, अनादिकाल से दुख दग्ध हो कर रो रहे है। "ध्यान द्वार कर्म रिपुओ का दहन, रोक सकता चार गतियो का भ्रमण है।" आज के सत्रास मय ससार मे, महावीर का सन्देश ही ऊषा किरण है।
(४) जीव-हिंसा, झूठ, चोरी का, जहा देखो वही वातावरण है। चारित्र का रथ गिर रहा है, दिखता सुरक्षा का नही कोई यतन है।
और फिर ये ग्रह परिग्रह का, म ज की खोपडी पर चढ़ उसे ललकारता है।