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आज के संत्रास मय संसार में, महावीर का संदेश ही ऊषा किरण है रचयिता - व्याख्याता श्री लालचंद जी 'राकेश' शा० उ० मा० शाला रायसेन ( म०प्र०)
(१)
आज
का
मानव पिपासाकुल, मगर पानी नही, वह खून पीना चाहता है । ओढ कर इसानियत की खाल, जिन्दगी शैतान की उन्मुक्त जीना चाहता है | पुण्य का सम्पूर्णत. परित्याग कर, दिन-रैन ही है लिप्त वह पापाचरण में । किन्तु किसी मूर्ख, वेलज्जत, पुण्य फल की चाह रखता है स्व मन में ॥ व्यस्त सुख की खोज मे नर, पर पा रहा सर्वत्र वह तम ही सघन है । आज के सत्तास मय ससार में, महावीर का सन्देश ही ऊषा किरण है ॥
(२)
आज नर की जिन्दगी क्या ? छल, दम्भ, मिथ्या, मोह, तृष्णा की पिटारी । कनक वर्णी कामिनी की आग मे, आसक्त हो, वनकर शलभ फूकी, गुजारी ॥ और कचन चाह कितनी ? द्रोपदी के चीर जैसी वढ रही दिन-रात दूनी ।