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इसलिये नर कर रहा सचय, दीन-दुखियों को सदा दुत्कारता है। "ये पाप है, छोड़े इन्हे, बन गया इस भाति जो वातावरण है।" आज के सत्रास मय ससार मे, महावीर का सन्देश ही ऊषा किरण है।
(५) बन रहे अणुबम, बड़े हम, कह रहे है चीन, रसिया और अमरीका। विस्तारवादी नीति पर चलकर, परस्पर कर रहे आलोचना, टीका ॥ आज का मानव, दुखी, पीडित, प्रकपित, पी रहा है अश्रुजल खास। वारूद का ईंधन, बनेगा एक दिन, निश्चित लडाकू विश्व ये सारा ।। "जियो खुद, और जीने दो, अगर माना नही इसने कथन है।" आज के सत्रास मय ससार मे, महावीर का सदेश ही ऊषा किरण है।"
कौन देखो जा रहा वह ? दीन, नगा और भिखमंगा। धरा ही सेज है जिसकी,
औ' चादरा आकाश, की गगा ।। इक नजर इस ओर भी डालो, प्रासाद मे वैभव किलोलें कर रहा है।