________________
१००
दिव्या लोक श्री छोटेलाल जी 'कवल' (अन्त्यत)
खुरई (सागर) म०प्र० धीर-वीर गभीर हृदय था महावीर युगवीर का कण-कण देता है प्रश्नों का
उत्तर मलय समीर का वैभव उनके चरण चूमने, सुर नगरी तज आया है। 'जियो और जीने दो' ने ही रची अलौकिक माया है ।।
पुन. पून. भव भाव-भ्रमण से वीतराग जिन विलग हुए इन्द्रिय निग्रह तय सयम मे ज्ञानानन्दी सजग हुए।
अष्ट कर्म रिपु वशीभूत कर दुनिया को दिखलाया है। 'जियो और जीने दो ने ही रची अलौकिक माया है ।।
जगमग जगमग दीपमालिका, केवल ज्ञान प्रतीक बनी। परम अहिंसा धर्म प्रेरणायुग युगान्त की लीक बनी ।।
अनेकान्त के समझौते ने सारा विश्व रिझाया है। 'जियो और जीने दो' ने ही रची अलौकिक माया है।।