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बढ़ने का बल पाया है प्रीतमसिंह 'प्रीतम' शुक्ला वार्ड खुरई
अनदेखी है मजिल मेरी, वीर-प्रभू का साया है। साया से ही उर मे मैंने, बढने का बल पाया है।
बढना ही जीवन है मेरा फूल खिले, या पथ मे काटे चाहे मौसम साथ रहे याचाहे तूफानो के चाटे ।
कैसा भी मौसम हो, लेकिन मैंने कदम बढाया है। कदम-कदम पर कदमो मे भी जोश हमेशा पाया है।
दुनिया के कलख को जानामैंने अपना ही पथ-दर्शन। भूतकाल है जीवन-दर्पणआने वाले का अभिनन्दन ।।
जब-जब भी की गलती मैंने, तब-तब शीश झुकाया है। वर्तमान के शुभ कर्मों से, जीने का वल पाया है। अनदेखी है मजिल मेरी, वीर प्रभू का साया है। साया से ही उर में मैंने, बढने का वल पाया है।