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जड़ता से चैतन्य की ओर नचयिता : रमेश रायत 'रंजन' खुरई (म०प्र०) कुण्डग्राम की जन्मभूमि ने,
__ भारत माँ को धन्य किया। त्रिशलानन्दन ने कण-कण को,
जड़ता से चैतन्य किया ॥१॥ जन्म जात इस अनासक्त ने,
जीवन को एकान्त किया। पूर्ण वीतरागी बन करके,
अनेकान्त उपदेश दिया ।२।। पावापुर निर्वाण भूमि से,
स्वय सिद्ध पद प्राप्त किया। ज्ञानालोक विखेरा एव
मिथ्या तिमिर समाप्त किया ॥३॥
मुक्तक
राग रग मे लिप्त आत्मा, कहलाती संसारी। पराधीनताओं से जकड़ी हुई लोक व्यवहारी।। किन्तु वीर ने स्वावलवमव श्रद्धा ज्ञान चरित्र वनाया। इसीलिए उनके चरणों पर तीनो लोको की बलिहारी।।
-~-डा० जुगलकिशोर गुप्ता 'युगल'