________________
६७
श्री महावीर स्तुति श्री सिंघई देवेन्द्रकुमार जी जयंत खुरई
मिल के गाये अपन, वीरा प्रभु के भजन, श्रावक सारे । मेटोमेटो जी कष्ट हमारे ॥
निश दिन तुम को भजे, पाप पाँचो तजे । कर दया रे, पातकी को लगा दो किनारे ॥ मेटो मेटो जी कष्ट हमारे ॥
नंद सिद्धार्थ के प्राण प्यारे, मातु त्रिशला की आँखों के तारे । राज्य - वैभव तजा, नग्न बाना सजा, सयम धारे ॥ मेटो मेटो जी कष्ट हमारे ॥
रुद्र ने घोर उपसर्ग ढाया, देवियो ने प्रभु को किन्तु डोले नही, बैन
रिझाया । बोले नही तप सम्हारे ॥ मेटो मेटो जी कष्ट हमारे ॥
राग की आग में जल रहे है, भ्रष्ट आचार है, दुष्ट
चाह की राह में चल रहे हैं । व्यवहार हैं, बे सहारे ॥ मेटो मेटो जी कष्ट हमारे ॥
मन को ऐसे मैं कब तक रमाऊँ, कौन विधि से तुम्हे नाथ ध्याऊँ । जयन्त व्याकुल भया, चैन सारा गया, आए द्वारे ॥ मेटो मेटो जी कष्ट हमारे ॥