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त्रिशला माँ की लोरी
(लोक-गीत) कवि श्री फूलचन्द जी "पुष्पेन्दु" खुरई तूं तो सोजा बारे वीर ; तूं तो सोजा प्यारे वीर।
वीर की बलहइयाँ लेती मोक्ष की प्राचीर ।। तूं तो सोजा बारे वीर ? तूं तो सोजा प्यारे वीर । तुझे झुलाऊं पालना मे, तुझे खिलाऊँ गोद ।। तुझे सुलाऊँ कैसे ? तूं तो जागृत आतम बोध । तूं तो चेतन की तस्वीर, तूं तो सन्मति की तस्वीर ॥
तस्वीर की गलबहिया लेती इन्द्रो की जागीर तूं तो सोजा प्यारे वीर ; तूं तो सोजा बारे वीर । काहे का है पालना? काहे की डारी डोर ।
घड़ी घडी जे वीरा पुलके, होकर आत्म-विभोर ।। जिन्हो का है वज्राङ्ग शरीर, जिन्हो की रग-रग में है क्षीर।
क्षीर मे किल्लोले करता करुणा, रस गंभीर। तूं तो सोजा बारे वीर ? तूं तो सोजा प्यारे वीर। रत्नन्नय का पालना है वीतराग की डोर।
सत्य अहिंसा के झूले मे हिंसा को झकझोर ।। तूं तो धरम धुरधर धीर, सचमुच नगन दिगम्बर वीर ।
वीर की वलहइयां लेती, शिव की मलय-समीर। तूं तो सोजा वारे वीर तूं तो सोजा प्यारे वीर ।।
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