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अन्त मेबारह वर्षों के, 'अन्धकार' को ! तपस्या के 'अबा' मे,
तपा डाला,-तन के 'तम' को!! कुन्दन बनकर, चकाचौंध किया 'अन्धकार' को । सत्य, अहिसा, त्याग, प्रेम की-मसालों से,
प्रकाशित किया, दिशाओ को !! मोक्ष का 'लोभ' दिखा। मोक्ष का-'मार्ग' दिखा ! । मानवता का 'पाठ' सिखा ! 'अमर-ज्योति' 'अमर-मजिल' पाकरअमर किया-नाम को है } -"अमन" ।
मेरा नमन, स्वीकार हो । ! Ori
+trit नमन सिद्धो का चैतन्य नग्न है
कर्म-पटल से निरावरण। अरिहतो का तन-मन नंगा
गंगा से ज्यादा पावन ।। हैं निर्ग्रन्थ दिगम्बर मुनिनय--
नग्न सर्वथा आकिञ्चन । इन्ही पंच परमेष्ठि गणो के-~
श्री चरणो में करूं नमन ।। J
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