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६२ सत्यमूर्ति थे ज्ञानमूर्ति थे, पौरुष भी वे मूर्तिमान थे। वे सन्मति थे महावीर थे, तीन लोक मे वे महान थे। कालजयी थे अत. स्वयं ही, भूत भविष्यत् वर्तमान थे। हीयमान को वर्द्धमान करने वाले वे वर्द्धमान थे ॥४॥
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दर्शन-बोध
श्री मदन श्रीवास्तव सेन्ट्रल बैंक ऑफ इण्डिया (खुरई) म० प्र० सलिल की बंद
जैन दर्शन का मिल कर
वही स्तम्भ है। जिस जगह
हो जिसमे वीरता बन जाती है मोती, ससार में वह वही स्थल
वीर है इस सद्उद्देश्य
पर अहिंसा का आरम्भ है
सत्य-शिव-सौन्दर्य सभी दर्शन
का जिसमें जहाँ जुड जाते हैं, समन्वय हो दर्शन से जीवन के वह निःसन्देह महत्तम
जग स्तुत्य महावीर है
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