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वे महान थे वर्द्धमान थे
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श्री शीलचन्द्र जी चौधरी 'शील'
खुरई (सागर) म०प्र०
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सन्मति का व्यक्तित्व काल क्या कभी बाँध सकता है ? महावीर का चिंतन जग की परिधि लॉघ सकता है। यावच्चन्द्र दिवाकर नभ मे ज्ञानालोक विखरता । उनसे प्रति विम्वित होकर ही कवि का भाव निखरता ॥१॥ वर्ग विहीन सृष्टि मानव की महावीर दिखलाते। अर्थनीति की मर्यादा को आवश्यक बतलाते । यह युग-युग का चिन्तन एव निष्कर्षों का मथन । सत्येश्वर का सोना है जो सर्वोदय का कचन ॥२॥ जाने मे या अनजाने मे महावीर का चिन्तन । विश्व निकट लाया करता आचार-विचारो का प्रण ॥ यह आचार सहिता उनकी स्वय सफल होती है। जो तिर्यंच नर नरकासुर के पाप सकल धोती है ॥३॥
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