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हो, ममता के रक्षक तुम, हो सुहाग के रखवारे । वीतराग तुम वैरागी तुम, पर स्वारथ के मतवारे !! बूढो की लाठी हो तुम, नयन हीन के नयना रे ! बधिर जनो के कान तुम्ही हो गूगो के तुम वयना रे !! क्रूर काल के द्वार मचादे, नए जन को शोर रे !!! चमक तडित सम 'पीर-मेघ' को चीर रे! अपने उर मे ले-सोख धरा की पीर रे ।। अपनी छाती पर रोक काल के तीर रे । जीवन के द्वारे पर खीचो युग की लखन लकीर रे ! 'जीवन-सीता' हर न पाये, छलिया रावण चोर रे।।! घोर निराशा के तम में तूं आशा ज्योति जगाता चल ! "मौतो के गलियारे" मे तूं जीवन-गीत सुनाता चल !! हर बुझते जीवन-दीपक की, बाती को उकसाता चल ! हरजीवन पथ भ्रष्ट पथिक को,सम्यक राह सुझाता चल!! 'यम के पाशो' घुटती-साँसों का मुसका हर पोर रे !!! लोभो के व्यूहो मे फँस कर, अपनी राह न खोना रे । सोने की जगमग मे चुधिया अपनी आव न खोना रे !! सुख के विरवा रोपन हारे, विष के बीज न वोना रे ! जीवन-ज्योति जगाने वाले, तम के गेह न सोना रे !! सोयी धरती के पूरव मे, चमको बन कर भोर रे !!! तव चरणों की बाट जोहता धरती का हर छोर रे । तप्त धरा के तृषित कणो पर, बरस पडो घनघोर रे ।।
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