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उद्बोधन
श्री डा० रामकुमार जी जैन
एम० वी० बी० एस खुरई
तव चरणो की बाट जोहता, धरती का हर छोर रे। तप्त-धरा के तृषित कणो पर, बरस पडो घनघोर रे ।। ताल-तलैयो के अधरो पर प्यास रे ! शोक मनाती देखो नदी उदास रे !! प्यासे पंछी की आँखो मे सास तोडती आस रे ! सूखे पनघट के घाटो पर वीरानो का वास रे !! पी. पी. पी रट रहा पपीहा प्यासा वन का मोर रे !!!