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उसको ही ज्यो का त्यो देखो, जानो मानो बस टिके रहो। जो वर्तमान सो वर्द्धमान बस इसी प्राप्ति हित विके रहो।। जिस तरह यहां पर बहुरूपिया, निज वसन त्याग कर स्वाग धरे।
उस तरह आत्मा तन तज कर कर्मानुसार भव भ्रमण करे। है मोक्ष मार्ग सम्यग्दर्शन ही सम्यक्ज्ञानाचार का। आनन्दित त्रैलोक्य हुआ है ढोग मिटा ससार का ।।
२३ इस देह त्याग से सुनो अरे यह नश्वर तन मिट जाता है। मोही चेतन के साथ-साथ बस पुण्य-पाप ही जाता है। चौरासी लक्ष योनियो मे यह आत्मा चलनी बनी रही। फिर जन्म-मरण के चक्कर मे चारो गतियो मे सनी रही। यदि वात गुनो मेरे भक्तो, तो नाम न लो ससार का । आनन्दित त्रैलोक्य हुआ है ढोग मिटा ससार का ॥
२४ है यह अनादि से स्वय सिद्ध, इसका न कोई निर्माता है। . है विश्व रचयिता स्वय अज्ञ, ज्ञाता तो इसे मिटाता है । यदि सचमुच ही सच्चे सुख के, तुम बने हुए अभिलाषी हो। तो छोडो लौकिक सुखाभास, तुम निजानन्द अविनाशी हो। , इस गुण समुद्र अपने चेतन मे लय हो क्षणिक विकार का । आनन्दित त्रैलोक्य हुआ है ढोग मिटा ससार का ।
२५ इस प्रकार श्री वीर प्रभू ने, स्वातन्त्र्य मन्त्र उद्घोष किया। साम्यवाद के साथ साथ ही, रत्नत्रय का कोष दिया ।। निर्वाण काल आया प्रभु का, तब पावन पर्व प्रसिद्ध हुए। फिर अष्ट कर्म कर नष्ट वीर, अर्हत् से शिव सुख सिद्ध हुए।