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जभिया ग्राम तट ऋजुकला, पर ज्यो ही वे ध्यानस्थ हुए। त्यो शाल वृक्ष के नीचे वे केवल ज्ञानी आत्मस्थ हुए । बैशाखी शुक्ला दशमी का था धन्य दिवस जयकार का। आनन्दित त्रैलोक्य हुआ है ढोग मिटा ससार का ।।
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वे पूर्ण वीतरागी होने से, जिनवर श्री अरिहन्त हुए। तीर्थङ्कर पुण्योदयी प्रकृति, से समवशरण भगवत हुए। तत्त्वोपदेश भूमंडल में देते थे चरण विहारी वे। नय अनेकान्त को समझाते थे रत्नत्रय के धारी वे॥ था समवशरण मे गूज रहा अति दिव्यनाद ॐकार का। आनन्दित त्रैलोक्य हुआ है ढोग मिटा ससार का ।।
२० प्रारभ हुए धर्मोपदेश कल्याणमयी सर्वोदय के। वाणी को सुनकर सभी जीव, थे आतुर निज ज्ञानोदय के ।। षड् द्रव्य सप्त है तत्व यहा उनमे आत्मा को पहिचानो। उसमे ही रमना मोक्ष अमर पहिले उसको मानो जानो।। है धर्म एक पर निर्देशन होता है विविध प्रकार का। आनन्दित त्रैलोक्य हुआ है ढोग मिटा संसार का ॥
पर्याय बदलती रहती है, क्षण क्षण उत्पन्न नई होती। मिलती न कभी भी आपस मे प्रत्युत् अतीत मे ही खोती ।। मत देखो गत पर्यायो को, सोचो मत भावी पर्याये। है स्वय अरे परिपूर्ण द्रव्य, स्वाधीन सहज सव आत्माये ॥ है द्रव्य यथावत् स्वाभाविक,वैभाविक विविध प्रकार का। आनन्दित त्रैलोक्य हुआ है ढोंग मिटा ससार का।