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वाहो का तकिया था उनका, चादर गगनाधार का। आनन्दित बैलोक्य हुआ है, ढोग मिटा ससार का ।।
आत्म चितवन मुख्य ध्येय था न्हवन और दन्तौन विहीन । शीत ग्रीष्म वर्षादिक ऋतुएँ करती उन्हे अधिक तल्लीन । सहज सौम्य स्वाभाविकता का, वन पशुओ पर पडा प्रभाव । परम अहिंसक तप ने पूरे जन्म जन्म वैरों के घाव ।।
था वना तपोवन शेर-गाय सव के स्वच्छद विहार का। आनन्दित त्रैलोक्य हुआ है, ढोग मिटा ससार का ॥
कभी कदाचित् भोजनार्थ वे, दृढ प्रतिज्ञ ईर्या-पथ से। चल कर खड़े खडे कर लेते, शुद्धाहार महाव्रत से ।। थी दासी एक अभागिन सी, जो कर्मों के फल भोग रही। जनक और जननी वियोग मे, जेलो मे दिन काट रही । नाम सुपरिचित चदनबाला चेटक सुता दुलार का। आनन्दित त्रैलोक्य हुआ है ढोग मिटा ससार का ॥
था दोष यही केवल उसका, थी रूप रग मे रमावती । स्वामिनि थी उसकी बदसूरत, चदन दासी थी रूपमती ।। प्रभु महाश्रमण श्री महावीर ने उसके घरआहार लिया। उस चन्दनवाला सी पतिता का युग युग को उद्धार किया ।
था द्वादश तप द्वादश वर्षी, दृढ निश्चय के व्यवहारका । आनन्दित त्रैलोक्य हुआ है, ढोग मिटा ससार का ॥
शुभ वयस् व्यालिस होने पर, वे वीतराग सर्वज्ञ बने । कर राग-द्वेष प ..पाप्त, वे सच्चे स्थित प्रज्ञ बने।।