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सच पूछो तो समय आगया जीवों के उद्धार का । आनन्दित त्रैलोक्य हुआ है, स्वाँग मिटा संसार का ॥
प्रत्युत्पन्न बुद्धि बालक की, वीरोचित क्रीड़ाएँ थी । एक बार का हाल सुनाये, जिसकी बहु चर्चाये थी । खेल खेल में वर्द्धमान भी, समवयस्क सह वृक्ष चढे । नागराज भी उसी वृक्ष पर आकर तब ही लिपट पड़े || फण पर पग रख उतर पडे पर असर नही फुकार का आनन्दित त्रैलोक्य हुआ है, स्वाग मिटा ससार का
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निर्मद हो पथ बदल लिये, थे जहरीले उद्गारो ने । हर्षित हो जय बोली मिलकर, साथी राजकुमारो ने ॥ इसी तरह जब एक वार, गजराज हुआ मतवाला था । गजशाला को तोड-फोड़, विप्लव प्रचड कर डाला था ।।
सभी लोग घबडा कर भागे, धैर्य अटूट कुमार का । आनन्दित त्रैलोक्य हुआ है, स्वाग मिटा ससार का ॥
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धीर प्रशान्त वीर सन्मति का, था सुयुक्ति से मन टकित । क्लिष्ट समस्याओ का हल वे, कर देते थे नि शक्ति ॥ श्री वर्द्धमान की प्रतिभा भी, दिन दूनी रात चौगुनी हुई । या प्रश्नो की बौछार स्वय, उत्तर की सिद्ध लेखनी हुई || शंकाएँ सव समाधान थी प्रश्न न अस्वीकार का । आनन्दित त्रैलोक्य हुआ है, स्वाग मिटा ससार का ॥
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ज्यों ज्यो किशोर अति वीर हुए, त्यों चिंतन प्रिय होते जाते पटु तर्क शास्त्री भी उनके तर्कों को सुनकर सकुचाते ॥
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