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वीर-वैभव
श्री लक्ष्मीनारायण जी 'उपेन्द्र' खुरई (सागर) म० प्र०
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अति पुण्य भूमि भारत वसुधा, उसमे कुडलपुर वैशाली । दैदीप्यमान हो उठी स्वय, थे क्योकि वीर प्रतिभाशाली || माता त्रिशला सिद्धार्थ पिता, हर्षित जग का हर प्राणी है । जन्मावतार की मंगलमय, वेला सचमुच कल्याणी है ॥ चैत्र शुक्ल शुभ त्रयोदशी, जन्मोत्सव राजकुमार का । आनन्दित त्रैलोक्य हुआ है स्वाँग मिटा ससार का ||
२
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श्री वृद्धिगत देख पिता ने वर्द्धमान शुभ नाम दिया । तीर्थंकर अवतार जान कर, इन्द्रो ने अति नृत्य किया । ऐरावत गज पर समासीन, कर पांडुक पर पधराया है । अभिषेक वीर का देख देख, जन जन का मन हरषाया है ॥ था दोज चन्द्र सा वर्द्धमान, सत् रूप ज्ञान सुकुमार का । आनन्दित त्रैलोक्य हुआ है, स्वाग मिटा संसार का ||
३
कचनवर्णी स्वर्णिम काया, आकर्षक थी रूपच्छाया । सुर पतिने नयन हजारो कर, देखा शिशु को न अघा पाया ॥ आत्म-ज्ञान सम्पन्न विवेकी, मेधावी वे बालक थे | भय तो भयभीत रहा उनसे, वे स्वत शौर्य के पालक थे |